जीवन परिचय – 🙁 Life introduction )
होडल के चौधरी काशीराम सोंरोत की सुपुत्री Maharani Kishori भरतपुर नरेश महाराजा सूरजमल की पत्नी थी| कई ऐतिहासिक घटनाओं के लिए Maharani Kishori को जाट इतिहास में याद किया जाता रहेगा | भरतपुर रियासत को बचाने और बढ़ाने में Maharani Kishori का योगदान महाराजा सूरजमल से काम नहीं है | महाराजा सूरजमल और जवाहर सिंह के बीच पैदा हुए विवाद को खत्म कर महारानी ने जवाहर सिंह के जीवन को बचाया |
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सदाशिव राव भाऊ ने पानीपत की तीसरी लड़ाई में महाराज सूरजमल से मदद मांगी थी, लेकिन जब महाराजा ने उन्हें भारी हथियारों और महिलाओं को भरतपुर छोड़ने की सलाह दी, तब उन्होंने सलाह नहीं मानी और युद्ध में हार गए। हारी हुई सेना और महिलाएं भी उनके साथ भरतपुर लौट आईं। इस घड़ी में Maharani Kishori ने भारतीय शौर्य और साहस की बढ़ती हुई आवश्यकता को महसूस किया और उन्होंने आओ भगत पर लगभग 10 लाख रुपए का खर्च किया। इस प्रयास में उन्होंने मराठा औरतों और सैनिकों के सम्मान बढ़ाने और उन्हें आदर सत्कार करने का अपना आदर्श साबित किया।
Maharani Kishori ने अपने समझदारी और नेतृत्व के कारण भरतपुर रियासत को बचाने में बड़ा योगदान दिया और उन्होंने मराठा औरतों को सशक्त बनाने का माध्यम प्रदान किया। इसके परिणामस्वरूप, वे आज भी मराठा समाज में आदर्श महिला के रूप में जानी जाती हैं और उन्हें उनके योगदान के लिए सम्मानित किया जाता है।
Maharani Kishori भरतपुर के इतिहास में अपने साहस और बलिदान के लिए प्रसिद्ध हैं और उनका योगदान आज भी स्मरणीय है|
महारानी किशोरी ने युद्ध के मैदान में हमेशा महाराजा सूरजमल के साथ खड़ी रहकर उनका साथ दिया। महाराजा सूरजमल की मौत के बाद, जब विपरीत परिस्थितियाँ उत्पन्न हुईं, तो महारानी किशोरी ने भरतपुर रियासत की सुरक्षा और बचाव में अपना संकल्प प्रदर्शित किया। उन्होंने भरतपुर रियासत की रक्षा के लिए सख्ती से काम किया और उसे बनाए रखने के लिए अपनी समर्पण भावना दिखाई।
महाराजा सूरजमल की मौत के बाद, जब भरतपुर रियासत में परिस्थितियाँ बिगड़ गईं, तो महारानी किशोरी ने वहां की सुरक्षा और स्थिति स्थापित करने के लिए कठिन परिस्थितियों का सामना किया। उन्होंने भरतपुर रियासत की गद्दी पर बैठकर उसकी रक्षा की जिम्मेदारी लेते हुए महाराजा सूरजमल की मौत का बदला लेने का निर्णय लिया।
महारानी ने जवाहर सिंह के साथ मिलकर भरतपुर को सुरक्षित रखने के लिए संघर्ष किया और उसने अपनी नेतृत्व कौशल से भरतपुर को एक सुरक्षित और स्वतंत्र रियासत बनाए रखा। उनका साहस और उनकी स्थिरता ने भरतपुर को दुर्गम समयों में भी स्थानीय राजा-महाराजाओं की सूरक्षा और समृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका दी। उनका योगदान भारतपुर के इतिहास में अमर रहेगा |
एसे हुई थी महारानी किशोरी की शादी -: ( Maharani Kishori’s wedding )
महारानी किशोरी की शादी महाराजा सूरजमल से उनकी प्रतिभा और शौर्य के आधार पर हुई थी। कहा जाता है कि एक दिन महाराजा सूरजमल हाथी पर सवार होकर होडल से गुजर रहे थे। तभी उन्होंने एक वाक्य देखा कि एक गुस्साया साड हर किसी को रोक रहा था, तभी किशोरी अपनी सहेलियों के साथ कुएं से पानी भरकर वापस लौट रही थी तभी साड ने किशोरी पर हमला बोल दिया किशोरी के सिर पर रख खड़े को साड पर दे मारा और उसका सींग पड़कर वही खड़ी हो गई।
उस समय, महाराजा सूरजमल ने एक विशेष दृश्य देखा, जिसमें गुस्साया साड़ किशोरी नामक किशोरी के साथ झगड़ा कर रहा था। गुस्साया साड़ा ने किशोरी को रोक रखा था, लेकिन किशोरी ने इसका सामना करते हुए उसका मुकाबला किया। इसके परिणामस्वरूप, साड़ा ने किशोरी पर हमला किया।
Maharani Kishori की वीरता -Bravery of Maharani Kishori –
किशोरी ने इस चुनौती का सामना करने का निर्णय लिया और उन्होंने अपनी सहेलियों के साथ कुएं से पानी भरकर वापस लौटने का निर्णय किया। इसके बाद, किशोरी के सिर पर रख खड़े को साड पर दे मारा और उसका सींग पड़कर वही खड़ी हो गई। किशोरी ने साड़ के हमले को साहसपूर्वक नटरंगी ढंग से परास्त किया | इसके पश्चात, गुस्साया साड़े ने किशोरी पर हमला बंद किया।
इस घटना ने महाराजा सूरजमल को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने तत्काल ही किशोरी से मिलकर उन्हें अपनी पत्नी बना लिया। इस साहसिक और साहसपूर्वक घटित घटना ने महाराजा सूरजमल और महारानी किशोरी के बीच एक अद्वितीय संबंध की नींव रखी, जो उनके बीच एक-दूसरे के प्रति विशेष स्नेह और समर्पण के साथ जुड़ा रहा
महाराजा सूरजमल ने महारानी किशोरी की बहादुरी और साहस को देखकर बेहद प्रभावित हुए और कुछ दिनों बाद, उन्होंने अपने पुरोहित को भेजकर महारानी से शादी का प्रस्ताव भेजा। महारानी किशोरी के पिता ने इस प्रस्ताव को स्वीकार किया, लेकिन उन्होंने इस विवाह की शर्त के रूप में महाराजा सूरजमल से होडल परगना की रियासत सौंपने की मांग की।
महाराजा सूरजमल ने इस मांग को स्वीकार किया और उन्होंने महारानी किशोरी के पिता को चौधरी की उपाधि देने का निर्णय लिया। इस प्रकार, महारानी किशोरी को उनकी बहादुरी और पराक्रम के लिए चौधरी की उपाधि प्राप्त हुई और महाराजा सूरजमल ने उन्हें होडल परगना की रियासत का संचालन सौंपा। इस विवाह ने महाराजा सूरजमल और महारानी किशोरी के बीच एक मजबूत और सांगतराश संबंध की नींव रखी, जो उनके राजा-रानी बनने के बाद भी दृढ़ रहा |
व्यक्तित्व -: ( Persona )
Maharani Kishori ने जवाहर सिंह के व्यक्तित्व को निखारने के लिए उसे भरतपुर रियासत के विस्तार के लिए हमेशा युद्ध में लगाए रखा। उन्होंने समझा कि सैन्य ताकत से लैस राजपूत राजा उन्हें पुष्कर स्नान नहीं करने देंगे और इस परिस्थिति में वे जवाहर सिंह को बचाने और बढ़ाने के लिए कई युद्धों में भाग लेती रहीं।
एक दिन, जवाहर सिंह ने महारानी किशोरी से पुष्कर स्नान की व्यवस्था करने के लिए कहा। उन्होंने राजपूत राजाओं के ऐतराज़ का हवाला देते हुए कहा कि वे इसे अनुमति नहीं देंगे। महारानी किशोरी ने तब उनसे सुझाव दिया कि वे चुपचाप कुछ महिलाएं और अंगरक्षकों के साथ पुष्कर स्नान करने की सलाह दें, जिससे राजपूत राजाओं को कोई आपत्ति नहीं होगी। जवाहर सिंह ने इस सुझाव को स्वीकार किया और इससे वे सन्तुष्ट हो गए। इस प्रकार, महारानी किशोरी ने अपनी चतुराई और साहस से जवाहर सिंह को पुष्कर स्नान का आनंद लेने में मदद की और उनके बीच में सांगतराश संबंध को मजबूत किया|
Maharani Kishori पुष्कर स्नान –
महारानी ने जवाहर सिंह को बताया कि वह महाराजा सूरजमल की पत्नी और जवाहर सिंह की माता हैं। इसके आधार पर, वह यह दर्शाने का निर्णय लिया कि वह भी शाही पुष्कर स्नान और ठाठ के साथ वैसे ही करेंगी जैसे राजपूत रानियाँ करती हैं।
इसके परिणामस्वरूप, जवाहर सिंह ने 7000 केवलारी, 1 लाख इन्फेंट्री, और 200 तोपों के साथ ढोल-नगाड़े के साथ जयपुर रियासत पहुंचे। रानी किशोरी ने सोने से लत पथ होकर और राजपूत रानियों को संकेत दिया कि वह भरतपुर रियासत की महारानी हैं जो स्नान करने पुष्कर जा रही हैं।
यह घटना महारानी किशोरी के आदर्श और साहसपूर्ण व्यवहार का उदाहारण है, जिससे वह अपनी स्थानीय और सामाजिक पहचान को साबित करती हैं। उन्होंने अपनी समझदारी और दृढ़ निश्चय से यह साबित किया कि वह अपने साम्राज्यिक कर्तव्यों को पूरा करने के लिए पूरी तरह समर्पित हैं |
महारानी किशोरी का राज्य संचालन -Queen Kishori’s reign –
महाराजा सूरजमल उन्हें बेहद चाहते थे, लोहागढ़ में महारानी किशोरी का महल है, महाराजा सूरजमल की धोखे से की गई हत्या का बदला लेने के लिए महारानी किशोरी ने तमाम इलाके को लामबंद किया था | और दिल्ली पर चढ़ाई करवा कर फतह हासिल करवाई | निशानी के तौर पर महाराजा जवाहर सिंह लाल किले का दरवाजा उखाड़ कर भरतपुर ले आए थे | जो दरवाजा अलाउद्दीन खिलजी चित्तौड़ पर आक्रमण करके महारानी पद्मिनी के जौहर के बाद दिल्ली ले गया था |
Maharani Kishori ने बेहद चाहने वाले महाराजा सूरजमल को लोहागढ़ में महल बनाकर सम्मानित किया था। उनका महल लोहागढ़ एक अद्वितीय और सुंदर स्थल है, जिसमें स्थलीय राजस्थानी शैली में सुलझी गई विशेषताएं हैं।
Maharani Kishori की शौर्य भरी कहानी वहाँ से आरंभ होती है, जहां उन्होंने महाराजा सूरजमल की धोखाधड़ी नरसंहार की घटना का बदला लेने के लिए स्थानीय इलाकों को लामबंद किया। महारानी किशोरी ने दिल्ली पर चढ़ाई करके एक बड़ी जीत हासिल की, जिसमें वह दिल्ली को जीतकर अपने पति सूरजमल की इज़्ज़त को संरक्षित करने में सफल रहीं |
महारानी किशोरी का यह कृतिकर्म उन्हें राजस्थान के इतिहास में एक अद्वितीय स्थान पर स्थापित करता है और उन्हें जाटों की वीरता और शौर्य की प्रतीक माना जाता है |
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