जीवन परिचय { महाराजा जवाहर सिंह } –Life introduction(Maharaja Jawahar Singh)
महाराजा जवाहर सिंह(Maharaja Jawahar Singh) का शासन काल सन् 1763 से सन 1768 तक रहा था। महाराजा जवाहर सिंह (Maharaja Jawahar Singh) महाराजा सूरजमल के प्रतापी ज्येष्ठ पुत्र थे। वह अपने पिता की तरह वीर और साहसी राजा थे।
जवाहर सिंह का जन्म 1728 ई. में डीग की किले में महाराजा सूरजमल के घर हुआ , जवाहर सिंह महाराजा सूरजमल के प्रतापी ज्येष्ठ पुत्र थे | जवाहर सिंह, हालांकि, अपने पिता और दादा की तरह नीति-निपुण और विनम्र नहीं थे । उसके क्रूर स्वभाव और क्रूर व्यवहार से पिता सूरजमल परेशान रहते थे। उससे सभी बड़े जाट सरदार असंतुष्ट थे, लेकिन सभी उसके वीरता के प्रशंसक थे।
महाराज सूरजमल की मृत्यु के समय भरतपुर राज्य में आगरा, धौलपुर, मैनपुरी, हाथरस, अलीगढ़, एटा, मेरठ, रोहतक, फर्रुखनगर, मेवात, रेवाड़ी, गुड़गांव और मथुरा के जिले शामिल थे ।राज्य की सीमा लगभग 150 मील उत्तर से दक्षिण और 200 मील पूर्व से पश्चिम थी।
महाराजा जवाहर सिंह ने अपने पिता की जीवित अवस्था में सैकड़ों युद्धों में जीत हासिल की थी, जब महाराजा सूरजमल की मृत्यु धोखे से दिल्ली विजय अभियान में हुई थी।
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दिल्ली विजय– { victory of delhi } (Maharaja Jawahar Singh)
जवाहर सिंह एक बार डीग के राजमहल में अपनी माता को प्रणाम करने गया था। उसके सिर पर एक सुंदर पगड़ी थी। राजमाता ने उस पगड़ी को देखकर रोते हुए कहा, “बेटा जवाहर, तू यहाँ सिर पर पगड़ी बांधकर चैन से घूम रहा है, और दिल्ली में तेरे बाप की पगड़ी मुगलों की ठोकर खा रही है।”
माता की इस बात को सुनकर के महाराजा जवाहर सिंह के खून में आग लग गई ,
जवाहर सिंह को रानी किशोरी ने भरतपुर की गद्दी पर बैठाकर कहा कि वह अपने पिता की हत्या का बदला लेगा। उसने दिल्ली पर आक्रमण करने और दिल्ली लालकिले को अपने हाथ में लेने की मांग की।जवाहर सिंह ने बड़ी सेना के साथ दिल्ली की ओर कूच किया। बाद में महाराजा जवाहर सिंह ने हमला किया, जिसमें 60 हजार जवान और सौ तोपों की जाट सेना थी। जवाहरसिंह ने शाहदरा के पास यमुना तट से लालकिले पर तोपों के गोले बरसाने शुरू कर दिए, जिससे किले और शत्रु को बहुत नुकसान हुआ।
लेकिन किले के बंद दरवाजे के किवाड़ों पर कठोर लोहे के भाले लगे हुए थे, जो हाथी की टक्कर से टूट सकते थे। लेकिन इन भालों से डरकर हाथी भाग निकले। यह जल्द ही पूरा होना चाहिए था।
जब उसके पास कोई दूसरा उपाय नहीं था, पुष्कर सिंह (पाखरिया) खड़ा हो गया और पीलवान से कहा कि वह अपनी कमर पर हाथी की टक्कर मरवा दे। दरवाजा तो टूटकर खुला, लेकिन वीर योद्धा पाखरिया वहीं मर गया। आज भी वृज क्षेत्र में महिलाओं द्वारा इसके ऊपर एक गीत गाया जाता है:
“डर गए कीलों को देख के सब हाथी फाटक पे मामा जी बलराम सिंह ने अड़ा दई थी छाती फाटक पे ………”
महाराजा जवाहर सिंह ने अपने पिता महाराजा सूरजमल की हत्या का बदला लेने के लिए दिल्ली की सड़कों को मुगलों के खून से रंगा।लाल किले पर भी चित्तौड़ दुर्ग से लाया गया अष्टधातु का दरवाजा उखाड़कर भरतपुर भेजा गया था।
चित्तौड़ का सम्मान किले का गेट– { Gate of Honor Fort of Chittor }
भरतपुर के महाराजा जवाहर सिंह ने दिल्ली के शासक नजीबुद्दौला पर हमला करके अपने पिता महाराजा सूरजमल को मार डाला। दिल्ली जीतने पर वे जानते थे कि अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ किले का गेट उखाड़कर लाया था। महाराजा जवाहर सिंह ने दिल्ली से चित्तौड़गढ़ किले का ऐतिहासिक दरवाजा उखाड़ कर भरतपुर भेजा था।
चित्तौड़गढ़ शासक को भरतपुर पहुंचने पर महाराजा जवाहर सिंह ने बताया कि वे दिल्ली से अष्टधातु के दरवाजे लाए हैं। आप राजपूती शान के प्रतीक दरवाजे को चित्तोड़ सकते हैं अगर आप चाहें। चित्तौड़गढ़ से कोई भी अष्टधातु के दरवाजे को लेने नहीं आया, इसलिए यह ऐतिहासिक दरवाजा भरतपुर के किले पर रखा गया। यह दरवाजा आज भी लोहागढ़ के फोर्ट के उत्तरी भाग पर खड़ा है,
दिल्ली अभियान के बाद, जवाहरसिंह ने पूरी तरह से शासन किया। उसने नवीन तरीके से सेना को तैयार किया; इससे राज्य अमीर हो गया। उसने कई महत्वपूर्ण युद्ध जीते। उसकी पराक्रम, साहस और रणकौशल की दुंदभी चारों ओर फैली हुई थी। चूड़ामन से लेकर आज तक जाट राजवंश के वीरों में से एक था जवाहरसिंह।
महाराजा जवाहर सिंह ने दिल्ली की सड़कों को मुगलों के खून से सजाया, अपने पिता महाराजा सूरजमल की हत्या का बदला लेने के लिए।
पुष्कर — यात्रा- { Pushkar–travel }
Maharaja Jawahar Singh माता किशोरी की इच्छा को पूरा करने के लिए जाटों की सेना के साथ पुष्कर चले गए।वह जाटों की पताका फहराते हुए जयपुर के राजा माधो सिंह को नहीं बताया और राज्य की सीमा पार कर पुष्कर पहुंचा।
लौटने पर दोनों सेनाओं में युद्ध हुआ, जयपुर की सेनाओं ने उसे रोका नहीं था। Maharaja Jawahar Singh ने राजपूतों के साथ वीरतापूर्वक लड़ाई लड़ी, माधो सिंह को युद्ध में हराया और जयपुर की सीमा पार कर सुरक्षित आगरा पहुंचा। इस युद्ध में राजपूतों को जाटों से लड़ाई करनी पड़ी, जिसमें माधो सिंह की हानि हुई और कई राजपूत योद्धा मारे गए। तबसे, जयपुर नरेश और जवाहरसिंह के बीच शत्रुता और घृणा बढ़ी, जिससे उनकी शक्ति कम हुई।
मृत्यु – { death }
Maharaja Jawahar Singh को 1825 में आगरा में धोखे से मार डाला गया था। जयपुर नरेश ने कहा कि वह एक गुप्त षड़्यंत्र था।
एक किवदंती के अनुसार –
आगरा के किले में एक दिन महाराजा जवाहर सिंह सो रहे थे जब एक मस्जिद में एक मुल्ला ने ऊँची आवाज में प्रातःकालीन नमाज पढ़ी. इस शोर ने उनकी नींद में बाधा डाली, जिसके बाद महाराजा जवाहर सिंह बहुत क्रोधित हो गए और सैनकों को आदेश देकर मुल्ला की जीभ कटवा दी. इसके बाद एक मुसलमान सैनिक ने उनके बगल में धोके तलवार घोंप कर हत्या कर दी |
मूल्यांकन – { Evaluation }
1763 से 1768 तक भरतपुर की राजगद्दी पर रहे महाराजा जवाहर सिंह ने अपने अद्भुत साहस और शौर्य से अपना नाम अमर कर दिया। और जाट राज्य का गौरव भी चरम पर था।
महाराजा जवाहर सिंह केवल वीर योद्धा ही नहीं थे, बल्कि कला और साहित्य का भी प्रशंसक और समर्थक थे। उसके आश्रित कवियों में भूधर, रंगलाल और मोतीराम शामिल हैं। बुढ़ापे में, ब्रजभाषा का प्रसिद्ध महाकवि देव उसके दरबार में आया।
भारतीय नरेशों में से पहले, महाराजा जवाहर सिंह ने आगरा के किले और दिल्ली के लाल किले को जीतकर विजय-वैजयन्ती फहराई और भारतेंदु कहलाया।
नाम और जन्म | महाराजा जवाहर सिंह { 1728 } |
माता – पिता | महाराजा सूरजमल ,महारानी किशोरी |
परदादा | चूडामन |
भाई | महाराजा रतन सिंह |
भतीजा | केहरी सिंह |
उत्तराधिकारी | महाराजा रतन सिंह |
मृत्यु | 1768 |
इतिहासकारों की उदासीनता – { Indifference of historians }
काश, लेखकों और फिल्मकारों को हमारे इतिहास के अध्यायों को दिखाने में ईमानदारी होती तो उनके पास ऐसे एपिसोड होते कि भारतीय राजा ने आक्रान्ताओं और विदेशी शासकों को बेटियां दी और उनके सम्बन्धी बनकर अपनी अपंग वीरता बघारने के झूठे किस्से नहीं होते।
आज भी, अगर कोई हिन्दू रक्षक इतिहास पर फिल्म बनाए तो दुनिया को पता चलेगा कि भारत के राजा सिर्फ बेटियां नहीं देते थे, अपितु विदेशी शासकों की बेटियों से विवाह के न्यौते मिलते थे और उनको महाराज महाराजा जवाहर की तरह आगे बढ़ाते थे।
अंग्रेज इतिहासकार – J. Billum Henarry ने लिखा है ” अगर मराठा शिवाजी ,भरतपुर नरेश महाराज जवाहर सिंह ,मेवाड़ के राणा सांगा की मृत्यु असमय ना होती तो शायद हिंदुस्तान मुस्लिम बिहीन होता “
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