Maharaja Surajmal( महाराजा सूरजमल ) { 1707-1763 } –जाट शक्ति का ऐसा – नाम जो मरते दम तक झुका नहीं

maharaja surajmal

यह लेख जाट योद्धाओं की रणनीति, युद्ध कौशल, वीरता और भारत में मुगलों की सत्ता को चुनौती देने वाले जाट योद्धा Maharaja Surajmal की वीरता को बताता है।

राजस्थान में कम अनाज उत्पादन होता है, लेकिन इस राज्य ने कई वीरों को जन्म दिया है जो अपने क्रोध और पराक्रम से दुनिया भर में भारतीय इतिहास को रोशन किया है, जो भारतीय इतिहास को भरपूर बनाता है। बहुत से लोगों ने देश, धर्म और संस्कृति को बचाने के लिए अपनी जान दी है।

वास्तव में, वीर योद्धा जैसे राजा पोरस, राजा सूरजमल, महाराजा जवाहर सिंह, हरिसिंह नलवा और महाराजा रणजीत सिंह को हमने भूला दिया है और इतिहास में उनके अधिकारियों को उचित सम्मान नहीं दिया गया है। मुगलों के इतिहास में, मुगलों की सत्ता को चुनौती देने वाले योद्धाओं को दंड मिलता था।

 वीर योद्धाओं की गाथा , जिन्होंने मुगलों और अंग्रेजों को मार डाला, नई पीढ़ी को सुनाना चाहिए।

इस लेख में जाट योद्धाओं की वीरता, रणनीति और युद्ध कौशल का चित्रण किया गया है, और मुगलों की सत्ता को चुनौती देने वाले जाट योद्धा महाराज सूरजमल की यादें जीवंत कर दी गई हैं। महाराज सूरजमल का जन्म एक ऐसे समय हुआ था जब उत्तर भारत की राजनीति बिगड़ गई थी और विनाशकारी शक्तियों ने देश को घेर लिया था।

देश भर में हिंसा को कोई रोका नहीं था।भारत का मन दुखी था।महाराज सूरजमल का जन्म उत्तर भारत के इतिहास में एक अनूठी घटना था।

चम्बल से यमुना तक के बड़े-बड़े क्षेत्रों का स्वामी बनकर महाराज सूरजमल ने जनता को अभयदान दिया और मुगलों और दुर्दान्त विदेशी आक्रान्ताओं को भारत की शक्ति से परिचित कराया।

राजस्थान के भरतपुर से लेकर मुगलों की राजधानी दिल्ली और आगरा तक, महाराज सूरजमल जाट की वीरता की कहानियाँ फैलीं।

18वीं शताब्दी में अफगानिस्तान के अहमदशाह अब्दाली और ईरान के नादिर शाह जैसे आक्रांताओं ने हजारों हिंदुओं को मार डाला, गायों को मार डाला और मंदिरों-तीर्थस्थलों को ध्वस्त कर दिया, इससे महाराज सूरजमल जाट का जन्म हुआ। मुगल आक्रांता की शक्ति कमजोर हो गई, इसलिए जो कुछ मन में आया, वह भारत को लूट कर चला गया।

राजस्थान के वीर योद्धाओं को पूरे विश्व में गाया जाता है। राजस्थान पहले राजपुताना कहलाता था। इस राजपुताने में एकमात्र जाट महाराजा था राजा सूरजमल। जिन्होंने भरतपुर राज्य की शुरुआत की

Maharaja Surajmal yuddh

जीवन परिचय महाराजा सूरजमल – { Biography of Maharaja Surajmal }

13 फरवरी 1707 को राजा बदन सिंह के घर डीग में महाराजा सूरजमल का जन्म हुआ। उनका बचपन का नाम सूजान सिंह था और वे भरतपुर, राजस्थान के जाट राजा थे। 17. शताब्दी में भरतपुर को राजा बदन सिंह ने बनाया था। उन्हें अपना छोटा साम्राज्य काफी बड़ा कर दिया गया था। महाराजा सूरजमल ने गंगा और यमुना नदियों को नियंत्रित किया और मथुरा, आगरा, बागपत, मेरठ और बरेली को अपनी राजधानी बनाया।

महाराज ने एक वीरांगना किशोरी से शादी की थी।। किशोरावस्था में महारानी होडल में रहती थीं और महाराज सूरजमल से कई युद्धों में भागी थीं। पानीपत की लड़ाई में पराजित मराठाओं की कई महीने तक सेवा कीं, क्योंकि वे बहुत बुद्धिमान थीं, इसलिए वे भरतपुर राज्य से कई वरों को बचाया।

महाराज सूरजमल ने आठ सौ युद्ध लड़े और सभी में विजयी हुए। महाराज सूरजमल अपने पूरे जीवन में एकमात्र राजा और योद्धा रहे जिन्होंने कभी भी युद्ध में पराजय नहीं झेली। महाराजा सूरजमल को भरतपुर रियासत का महाराजा माना जाता था, लेकिन वे एक किसान थे।भरतपुर की स्थापना करने वाले महाराजा सूरजमल ने कभी मुगलों के सामने घुटने नहीं टेके। मुगलों के साथ कई राजा गए, लेकिन महाराजा सूरजमल ने मुगलों से लौहा ले लिया।

भरतपुर रियासत का विस्तार-{ Expansion of Bharatpur state }

भरतपुर के मैदानों से गंगा की घाटी तक और मेवात रोहतक से चंबल की धाराओं तक राजा सूरजमल का साम्राज्य था। इन सभी क्षेत्रों को महाराजा सूरजमल ने नियंत्रित किया था।

महाराजा सूरजमल ने भरतपुर रियासत को धौलपुर, आगरा, मैनपुरी, अलीगढ़, हाथरस, इटावा, मेरठ, रोहतक, मेवात, रेवाड़ी, गुड़गांव और मथुरा तक बढ़ाया।

प्रमुख उपाधियाँ  – { major titles Of Maharaja Surajmal }

महाराजा सूरजमल को उसके समकालीन इतिहासकारों ने ‘जाटों का प्लेटों‘ कहा है। इसी तरह, एक आधुनिक इतिहासकार ने महाराजा सूरजमल को ओडिसस से तुलना की है क्योंकि वे बहुत बुद्धिमान थे।

कुछ इतिहासकारों ने महाराजा सूरजमल को “जाटों का अफलातून” भी कहा है।

किले और भवनों निर्माण – { construction of forts and buildings }

भरतपुर शहर 1733 में बनाया गया था। 1732 में बदनसिंह ने अपने 25 वर्षीय पुत्र सूरजमल को डीग के दक्षिण-पश्चिम में सोघर गांव पर आक्रमण करने के लिए भेजा। Maharaja Surajmal सोघर विजेता हुआ। वहाँ राजधानी का किला बनने लगा। भरतपुर में लोहागढ़ किला है। यह देश का एकमात्र किला है जो बार-बार हमलों से बच गया है।

1: पहला कुम्हेर का किला: भरतपुर से १५ किलोमीटर दूर कुम्हेर कस्बे में किशोरी महल है।

  1. गोपाल महल: महाराज सूरजमल ने डीग जिले में गोपाल महल बनाया था। असल में, यहाँ एक संगमरमर का झूला है जिसे लोग नूरजहाँ के झूले के नाम से जानते हैं। यह सिर्फ डीग में महाराज ने बनाया था।

लाखा तोप: दिल्ली तक कहा जाता है कि महाराज ने डीग के किले पर स्थित लाखा तोप को खुद बनाया था।

  1. भरतपुर में लोहागढ किला: सूरजमल महाराज ने इस किले को ऐसा बनाया था कि दुश्मन किसी भी स्थान से आक्रमण कर सकता था। यह देश का एकमात्र अभेद्य किला है और इसके चारों ओर एक बड़ी खाई है। राजा ने जाटों को उस समय महान बनाया था।

महाराजा सूरजमल और बगरू की लड़ाई-{ Battle of Bagru Maharaja Surajmal }

युद्ध में महाराजा सूरजमल ने दोनों हाथों में तलवार रखी थीं। महाराजा सूरजमल और जयपुर रियासत के महाराजा जयसिंह की दोस्ती एकमात्र है। जयसिंह की मृत्यु के बाद, उसके बेटों ईश्वरी सिंह और माधोसिंह में रियासत की गद्दी को लेकर लड़ाई हुई।

उदयपुर रियासत के महाराणा जगतसिंह छोटे पुत्र माधोसिंह को राजा बनाना चाहते थे, लेकिन महाराजा सूरजमल बड़े पुत्र ईश्वरी सिंह को। सत्ता के लिए बहस शुरू हुई। मार्च 1747 में ईश्वरी सिंह ने युद्ध जीता। युद्ध यहाँ खत्म नहीं हुआ।

माधोसिंह ने मराठों, राठोड़ों और उदयपुर के सिसोदिया राजाओं के साथ वापस युद्ध में भाग लिया। ईश्वरी सिंह के साथ युद्ध में 10,000 सैनिक महाराजा सूरजमल ने भेजे। इस युद्ध में जीतने वाले ईश्वरी सिंह को जयपुर का राजा बनाया गया। महाराजा सूरजमल को इसके बाद पूरे भारत में सम्मान मिला। राजपूत महिलाओं ने महाराजा सूरजमल को दोनों हाथों में तलवार लिए लड़ते देखा, और वहां खड़ी मैदान में एक भयानक दहाड़ सुनाई दी।

“नहीं सही जाटनी ने व्यर्थ प्रसव की पीर!
जब जन्मा उसके गर्व से सूरजमल सा वीर”!!

maharaja surajmal delhi yuddh

दिल्ली युद्ध का कारण – { reason for delhi war }

दिल्ली के बादशाह ने हिंदू पंडित की लड़की को बंधक बनाकर उससे शादी करना चाहा, जब मुगलों का आतंक बढ़ रहा था। हिंदू लड़की की मां ने हर जगह अपनी पुत्री को बचाने की विनती की, लेकिन असंतोष हाथ लग गया। उस लड़की की मां परेशान होकर खून से लिखा पत्र भरतपुर भेजा और महाराजा सूरजमल से अपनी पुत्री की लाज बचाने की विनती की।

Maharaja Surajmal ने पत्र पढ़कर दिल्ली के बादशाह को अपना दूत भेजकर हिंदू लड़की को तत्काल रिहा करने को कहा। दिल्ली के बादशाह ने महाराजा सूरजमल का प्रस्ताव खारिज कर दिया था।

यह सुनकर महाराजा सूरजमल ने हिंदू लड़की की गरिमा बचाने के लिए दिल्ली पर हमला किया।

दिल्ली  का युद्ध { battle of delhi } – Maharaja Surajmal

1750 तक सम्राट महाराजा सूरजमल ने बड़ा साम्राज्य बनाया। 1752 में महाराजा सूरजमल ने अंततः वह मौका पाया जिसका वे इंतजार कर रहे थे।दिल्ली में मुगल सुल्तान अहमद शाह और उसके वजीर सफदरजंग का गृहयुद्ध हुआ।

Maharaja Surajmal ने ग्रहयुद्ध के दौरान दिल्ली में सुन्नी और शिया मुसलमान के बीच संघर्ष को यूं ही चलने दिया और सही समय का इंतजार करने लगा।
30 अप्रैल 1753 को लोहा गर्म होने पर राजा सूरजमल ने दिल्ली के सफदरजंग में पक्ष में ताल ठोक दी। दिल्ली पर हमला हुआ।

Maharaja Surajmal ने युद्ध की रणनीति विकसित करने की शुरुआत की।महाराज सूरजमल के उत्साह से घबरा गया मुगल बादशाह ने अपने वकील महबूबद्दीन को औरंगाबाद से मलहराव होल्कर को बुला लाने के लिए भेजा। लेकिन महाराजा सूरजमल के सैनिको ने उसे पलवल के निकट पकड़ लिया और उसे जेल में डाल दिया।

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दिल्ली में महाराज सूरजमल की विद्रोह से राजा घबरा गया। मुगलों ने इस दिन को “जाटगर्दी” कहा जब अहमदशाह ने कहा कि “महाराजा सूरजमल दिल्ली में है और इस्लाम खतरे में है।”

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दिल्ली पर आक्रमण और महाराजा सूरजमल की मौत का दंड

दिल्ली युद्ध में महाराज सूरजमल की मृत्यु के कुछ दिनों बाद, एक दिन महारानी किशोरी ने जवाहर सिंह से कहा

     “बेटा, तुम्हारी पगड़ी डीग में बांध दी गई है, और तुम्हारे पिता की पगड़ी दिल्ली में धक्के खा रही है।”

महाराजा जवाहर सिंह ने माता की बात सुनकर क्रोधित होकर दिल्ली पर हमला कर दिया। दिल्ली के लाल किले पर जीत की पताका फहराने के लिए उन्होंने 5000 घोड़े, 60 हाथी, 15,000 सवार, 25,000 से अधिक पैदल, 300 से अधिक तोपें और उतनी ही बारूद के साथ हमला किया।

महाराजा का निधन– { Deth of Surajmal }

महाराज सूरजमल की मृत्यु पर कई इतिहासकारों ने अलग-अलग विचार व्यक्त किए हैं; माना जाता है कि रुहेलो ने हिंडन नदी के किनारे घुमते हुए महाराज सूरजमल को गोली मार दी. 56 वर्ष की उम्र में हिंदू धर्म का वीर सपूत मर गया। 25 दिसंबर 1763 को दिल्ली में महाराजा सूरजमल का निधन हो गया।Delhi आज भी भारत माता के सपूत को श्रद्धांजलि देते हुए महाराजा के बलिदान दिवस पर उनकी समाधी पर पुष्प अर्पित करती है।

कुसुम सरोवर – महाराजा का समाधी

गोवर्धन से दो किलोमीटर दूर राधाघाट में कुसुम सरोवर ऐतिहासिक है। 60 फीट गहरी और 450 फीट लंबी है। 17. सदी में मध्य प्रदेश के बुंदेला राजा वीर सिंह देव ने सरोवर बनाया था। यह एक सुंदर सरोवर था, जो महाराजा सूरजमल ने बनाया था। महाराजा जवाहर सिंह ने अपने पिता और तीनों माताओं की याद में सरोवर के पश्चिम में एक ऊंचे चबूतरे पर छतरियों को बनाया। महाराजा जवाहर सिंह ने 1768 में यहां कई छतरियां बनाईं।

निष्कर्ष —-

महाराज सूरजमल की दिल्ली की लड़ाई में जीत ने राजस्थान के राजपूत राजाओं में उनकी लोकप्रियता बढ़ा दी। उन्हीं के राज में भरतपुर राज्य ने राजस्थान में अपना प्रभाव बढ़ा। इस जीत से पता चलता है कि वे राजस्थान राज्य के विकास और समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

कुल मिलाकर, महाराज सूरजमल ने भरतपुर राज्य को सुख-समृद्धि से भरने के लिए अपना सब कुछ दिया। दिल्ली की लड़ाई में जीतने पर वे राजस्थान के महाराजा बन गए। यही कारण था कि महाराजा सूरजमल के शासनकाल में दिल्ली की लड़ाई एक महत्वपूर्ण इतिहासिक घटना थी।

दिल्ली की लड़ाई की तारीखों और घटनाओं पर इतिहासकारों का मतभेद है। इसके बावजूद, महाराजा सूरजमल ने दिल्ली और आसपास के इलाकों में अपनी पकड़ बनाए रखी।

सिवाय जाटों के राजस्थान के सूरजमल ने दिल्ली को जीत लिया था।

ये जाट राजकुमार सूरजमल स्वतंत्र हिंदू राज्य का सपना रखते थे और मुगलों के सामने कभी झुका नहीं था।

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