फंडी की भरमाई शाक्का/जौहर करती!
जाटणी की जाई, बैरी के प्राण हरती!!
इस कहानी को चरितार्थ करती जाट वीरांगना Ranabai की शौर्यगाथा!
भारत में नारी को हमेशा देवी की संज्ञा दी गई है, जब आवश्यकता पड़ी तो उसने ज्ञान की प्रतिमूर्ति बनकर अपने स्वरों से देश को एक नई दिशा दी, जब अवसर आया तो उसी नारी ने शक्ति स्वरूपा चंडी का रूप धारण कर अदम्य साहस और शक्ति का लोहा बनवाया |
शासन और समर में स्त्रियों का सरोकार नहीं जैसी पुरुषवादी धारणाओं को ध्वस्त करती भारतीय वीरांगनाओं का जिक्र किए बिना मध्यकालीन भारत की दास्तान अधूरी है, जिन्होंने मुगलों और अंग्रेजों को लोहे के चने चबबा दिए आज जब महिला शक्ति की बात हो और जाट वीरांगना Ranabai का नाम ना आए तो यह जाट वीरांगना के साथ अन्न्नाय बात होगी |
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जीवन परिचय ( Life introduction )
Ranabai, जिसे वीराँगना Ranabai भी कहा जाता था, एक जाट वीर बाला और कवयित्री थीं। राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में उनकी रचनाएं लोकप्रिय हैं। वह राजस्थान की दूसरी मीरा बाई है। वह संत चतुर दास जी की शिष्या थीं। Ranabai की माता रानी जयवंती देवी थी, और उनके पिता जालम सिंह एक बड़े जमींदार थे।
Ranabai जी बचपन से ही बहुत धार्मिक और भक्तिपूर्ण थीं। वे भगवान श्री कृष्ण की सबसे बड़ी अनन्य भक्त थीं। Ranabai ने राजस्थानी भाषा में कई कविताएँ लिखीं। सारी रचनाएँ एक आम लय में रची गई हैं। उनके गानों का संकलन “पदावली” कहलाता है। उनके गीतों का गायन ठेठ राजस्थानी था। Ranabai जी ने कई चमत्कार किए। उनके पास बीमार लोगों का उपचार और बचाव था।
क्यों प्रसिद्ध हुई Ranabai ? ( Why did Ranabai become famous )
राना बाई जी ने भक्ति से ईश्वरीय शक्ति प्राप्त की। बोरावड़ के मेड़तिया ठाकुर श्री राज सिंह एक बार बादशाह से युद्ध करने के लिए अहमदाबाद जाते समय हरनावा गाँव में रुके। राना बाई की प्रसिद्धि सुनकर वे उनके पास गए। गोबर से राना बाई कंडे बना रही थीं। ठाकुर राज सिंह ने राना बाई से प्रणाम करके पूछा कि क्या वे बादशाह से युद्ध में जीत सकते हैं? Ranabai ने ठाकुर की पीठ पर गोबर का छापा लगाया, जो बाद में केशरी रंग में बदल गया। रानाबाई जी ने कहा कि जब तक आप मेरा यह चूड़ा हाथ में देखते हैं, तो लड़ो।
जीत निश्चित है। युद्ध में बोरावड़ दरबार ने बादशाह को हराया। उन्होंने रानाबाई को वचन दिया कि अगर मैं विजेता हो जाऊँगा तो मैं आपके पास आकर प्रणाम करूँगा और फिर घर जाऊँगा। गढ़ के प्रवेश द्वार पर सेना के साथ बोरावड़ दरबार पहुँचा, लेकिन हाथी गढ़ में नहीं घुस पाया। फिर ठाकुर राज सिंह राना बाई से मिलने हरनावा गए और उनसे माफी मांगी।
Ranabai की वीरता ( Ranabai’s bravery )
मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में वीरांगना राना बाई थी , जिनका जन्म संवत 1600 {सन 1543 ईस्वी } में जोधपुर राज्य के अंतर्गत परवतसर परगना में हरनामा गांव के चौधरी जालम सिंह धाना गोत्र के जाट के घर हुआ था |
वह कृष्ण भक्त थी ईश्वर सेवा और गौ सेवा ही उसके लिए आनंददायक थी, उसने अपनी भीष्म प्रतिज्ञा आजीवन ब्रह्मचारिणी रहने की कर रखी थी | इसलिए उनका विवाह नहीं हुआ, हरनामा गांव के उत्तर में दो कोष की दूरी पर गच्चोलाव नामक विशाल तालाब के पास दिल्ली के सम्राट अकबर का एक मुसलमान हाकिम 500 घुड़सवारों के साथ रहता था,
वह हकीम बड़ा ही क्रूर और बेरहम दिल था था, व्यभिचारी दुष्ट प्रवृत्ति का था | उसने राना बाई के यौवन रंग रूप की प्रशंसा सुनकर राना बाई से अपना विवाह करने की ठान ली, उसने चौधरी जालम सिंह को अपने पास बुलाकर कहा कि तुम अपनी बेटी राना बाई को मुझे दे दो मैं तुम्हें मुंह मांगा इनाम दूंगा चौधरी जालम सिंह ने उसे हाकिम को फटकार कर कहा कि
“मेरी बेटी किसी हिंदू से ही विवाह नहीं करती तो मुसलमान के साथ विवाह का तो सवाल ही नहीं उठाता”
हाकिम ने जालम सिंह को कैद कर लिया और स्वयं सेना लेकर राना बाई को जबरदस्ती से लाने के लिए हरनावा गांव पहुंचा ,और जालम सिंह के घर को घेर लिया ,जब वह राना बाई को पकड़ने के लिए उसके निकट गया तो राना बाई अपनी तलवार लेकर उसे क्रूर सेनापति पर सिंहनी की तरह झपटी और एक ही झटके में उसका सिर धड़ से अलग कर दिया |
बाल ब्रह्मचारी राना बाई सिंहनी ने की तरह गर्जना करती मुगल सेना में घुस गई और अपनी तलवार से गाजर मूली की तरह मुगलों के सर काट दिए | इस अकेली वीर क्षत्राणी ने 500 मुगलों को युद्ध करके को मौत के घाट उतार दिया |बचे हुए थोड़े से सैनको ही भाग कर अपने प्राण बचा सके , जाटों ने उनका पीछा किया और चौधरी जालम सिंह को कैद से छुड़ा लिया गया | वीरांगना राना बाई की इस अद्वितीय वीरता की कीर्ति सारे देश में फैल गई वीरांगना राना बाई के स्वर्गवास होने पर उसकी यादगार के लिए उनके भक्तों ने उनका एक स्मारक बना दिया |
भक्तिमयी महासती राना बाई हरनावां, इतिहासकार विजय नाहर की पुस्तक, राना बाई की बचपन से लेकर मरने तक की जीवन गाथाओं को प्रमाणित करती है। राना बाई के पूर्वज जैसलमेर से आए थे। रानाबाई मीराबाई की पीढ़ी में जन्मी थी। दोनों ने एक बार वृन्दावन में भगवान श्री कृष्ण का साक्षात्कार किया। भगवान श्रीकृष्ण ने दोनों को अपनी- एक एक मूर्ति दी,
Ranabai माता का मेला ( Ranabai Mata Fair )
राजस्थान के नागौर जिले के परबतसर तहसील के हरनावां गांव में हर महीने की शुक्ल पक्ष की तेरस को राना बाई माता का मेला मनाया जाता है। रानाबाई माता के अनुयायियों के लिए यह मेला एक महत्वपूर्ण धार्मिक कार्यक्रम है। राजस्थान के विभिन्न भागों से लाखों लोग मेले में आते हैं।
- राजस्थान का एक बड़ा धार्मिक उत्सव राना बाई माता मेला है। रानाबाई माता के भक्तों के लिए यह मेला एक महत्वपूर्ण अवसर है, जहां वे अपनी आस्था व्यक्त करते हैं और माता से आशीर्वाद लेते हैं। यह भी माना जाता है कि राना बाई माता अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं।
Ranabai माता के प्रमुख मंदिर -: ( Major temples of Ranabai Mata )
नागौर का हरनावा मंदिर:
नागौर रेलवे स्टेशन पर स्थित मंदिर:
जोधपुर में स्थित जोधपुर मंदिर: यह मंदिर जोधपुर में है।
बीकानेर में स्थित बीकानेर मंदिर:
अजमेर का अजमेर मंदिर
आधार लेख – 1- सती शिरोमणि रानाबाई ,लेखक चौधरी किशनाराम आर्य
2 – जाटों का इतिहास : कैप्टन दिलीप सिंह अहलाबत
3 – जाट इतिहास : ठाकुर देशराज
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One thought on “जाट वीरांगना Ranabai (1543) की अद्वितीय कहानी: उनकी शौर्यगाथा जो देती है सबको प्रेरित करने का संदेश!”