Baba Shahmal: 1857 की क्रांति के अद्वितीय नायक जिन्होंने बदला इतिहास, जानिए उनकी अद्वितीय कहानी!

Baba Shahmal

Baba Shahmal जीवन परिचय –

Baba Shahmal जाट{ तोमर } बागपत जिले में बिजरोल गांव के एक साधारण परंतु आजादी के दीवाने क्रांतिकारी किसान थे | वह मेरठ और दिल्ली समेत आसपास के इलाके में बेहद लोकप्रिय थे | मेरठ जिले के समस्त पश्चिमी और उत्तर पश्चिमी भाग में अंग्रेजों के लिए भारी खतरा उत्पन्न करने वाले बाबा शाहमल ऐसे ही क्रांतिदूत थे |

Baba Shahmal : 1857 क्रांति के नायक की जीवनी-

अंग्रेजी हुकूमत से पहले यहां बेगम समरू राज्य करती थी | बेगम के राजस्व मंत्री ने  यहां के किसानों के साथ बड़ा अन्याय किया | यह क्षेत्र 1836 में अंग्रेजों के अधीन आ गया | अंग्रेज अधिकारी क्लाउड ने जमीन का बंदोबस्त करते समय किसानों के साथ हुए अत्याचार को कुछ सुधारा  परंतु मालगुजारी देना बढ़ा दिया , पैदावार अच्छी थी जाट किसान मेहनती थे सो बढ़ी हुई मालगुजारी भी देकर खेती करते रहे | खेती के बंदोबस्त और बढ़ी मालगुजारी से किसानों में भारी असंतोष पैदा हो गया, जिसने 1857 की क्रांति के समय आग में घी का काम किया |

Baba Shahmal की क्रांति प्रारंभ में स्थानीय स्तर की थी परंतु समय पाकर विस्तार पकड़ती  गई | आसपास के नंबरदार विशेष तौर पर बड़ोत के नंबरदार सोहन सिंह और बुद्ध सिंह और जोहरी जफराबाद और जोत के नंबरदार बदन सिंह और गुलाम भी विद्रोही सेना  में अपनी-अपनी जगह पर आ जमें | सहमल के मुख्य सिपहसालार  बगुता  और सज्जा  थे | और जाटों के दो बड़े गांव बावली और बड़ोत  अपनी जनसंख्या और रसद की तादाद के सहारे शाहमल के केंद्र बन गए |

Baba Shahmal

10 मई  को मेरठ से शुरू विद्रोह की लपटे इलाके में फैल गई | सहमल ने जहाजपुर के गुर्जरों के साथ लेकर बड़ोत  तहसील पर चढ़ाई कर दी|

बंजारा सौदागरों की लूट से खेती की उपज की कमी को पूरा कर लिया | मई  और जून में आसपास के गांव में उसकी धाक जम गई | फिर मेरठ से छूटे हुए कैदियों ने उनकी फौज को बढ़ा दिया | उनके प्रभुत्व और नेतृत्व को देखकर दिल्ली दरबार में उसे सूबेदारी  दी |

Baba Shahmal : क्रांतिकारी नेता का उदय

12 मई  1857 को शाहमल ने सर्वप्रथम बंजारा व्यापारियों पर आक्रमण कर काफी संपत्ति कब्जे में ले ली , और पुलिस चौकी पर हमला बोलकर  लूटपाट की | दिल्ली के क्रांतिकारियों को उन्होंने बड़ी मदद की|  क्रांति के प्रति अगाध  प्रेम और समर्पण की भावना ने जल्दी ही उनको क्रांति वीरों का सूबेदार बना दिया |

शाहमल ने बलोचपुरा के एक बलोची नवीबख्श के पुत्र अल्लादिया को अपना दूत  बनाकर दिल्ली भेजा | ताकि अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने के लिए मदद और सैनिक मिल सकें | बागपत के थानेदार वजीर खान ने भी इस उद्देश्य से सम्राट बहादुर शाह को अर्जी भेजी | बागपत के नूर खान के पुत्र मेहताब खां से भी उनका संपर्क था |

Baba Shahmal : 84 गांवों का सरदार

अपनी बढती  फौज की ताकत से उन्होंने बागपत के नजदीक यमुना पर बने पुल को नष्ट कर दिया | उनकी इन सफलताओं से उन्हें 84 गांव का अधिपत्य मिल गया | उसे आज तक देश “ खाप की 84 “ कहकर पुकारा जाता है | वह एक स्वतंत्र क्षेत्र के रूप में संगठित कर लिया और इस प्रकार वह यमुना के बाय किनारे का राजा बन बैठा, जिससे कि दिल्ली की उभरती फौज को रसद जाना कतई बंद हो गया | और मेरठ के क्रांतिकारियों को मदद पहुंचती रही | इस प्रकार वह एक छोटे किसान से बड़े क्षेत्र के अधिपति बन गए, कुछ अंग्रेज जिम हैबिट फॉरेस्ट, वाटसन कॉर्पोरेट कोर्प  और थॉमस प्रमुख थे |

शाहमल ने 300 सैनिकों के साथ बड़ोद पर कब्जा कर लिया जब कुछ बेदखल हुए जाट लोगों ने अंग्रेज अफसर डनलप का साथ छोड़ दिया। शाहमल पहले से ही गांव छोड़ गया था जब अंग्रेजी सेना ने गांव को घेर लिया. अंग्रेजों ने बचे हुए सैनिकों को मार डाला और 8000 मन गेहूं पकड़ा।

Baba Shahmal के दब-दवे से पता चलता है कि अंग्रेजों को इस अनाज को खरीदने के लिए किसान या व्यापारी नहीं मिले. गांव वालों को सेना ने निकाल दिया, लेकिन दिल्ली से आए दो गाजी एक मस्जिद में मोर्चा लेकर लड़ते रहे. शाहमल ने यमुना नहर पर सिंचाई विभाग के बंगले को अपना मुख्यालय बनाया और अपनी गुप्तचर सेना बनाई। हमले की पूर्व सूचना मिलने पर उन्होंने एक बार 129 अंग्रेजी सैनिकों को खराब कर दिया था।

 एलियट नामक लेखक ने 1830 में लिखा है की पगड़ी बांधने की प्रथा  व्यक्ति को आदर देने की प्रथा  ही नहीं थी बल्कि उन्हें नेतृत्व प्रदान करने की संज्ञा थी | शाहमल हमने इस प्रथा का पूरा उपयोग किया | शाहमल बड़ौत गांव से भाग कर निकालने के बाद कई गांव में गया और करीब 50 गाँव की एक नई फौज बनाकर मैदान में उतर पड़ा | दिल्ली दरबार और Baba Shahmal की आपस में उल्लेखित संधि थी | अंग्रेजों ने समझ लिया कि दिल्ली की मुगल सत्ता को बर्बाद करना है तो शाहमल की शक्ति को खत्म करना आवश्यक है | उन्होंने शाहमल को जिंदा या मुर्दा उसका सर काट कर लाने वाले के लिए₹10000 इनाम घोषित किया |

Baba Shahmal का दिल्ली मुक्ति अभियान: अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष

शाहमल की सेना से भागने के लिए डनलप, अंग्रेजी सेना का नेतृत्व कर रहा था। उसने अपनी डायरी में लिखा कि “खाकी रिसाला कहा जाता था का कितना नामुमकिन था”, एक सैन्य अधिकारी ने उनके बारे में लिखा कि एक जाट शाहमल, जो बड़ोत का गवर्नर बन गया था और राजा की पदवी प्राप्त कर चुका था। उसने चार और तीन परगोनों को चलाया था। दिल्ली के घेरे के दौरान इस व्यक्ति ने जनता को बचाया।

छपरा गांव के त्यागियो, बड़ोद के जादूगर ,और बिचपुरी के गुर्जरों ने भी Baba Shahmal के नेतृत्व में क्रांति में पूरी शिरकत की | अमरा के गुर्जरों ने बड़ौत व बागपत की लूट में  एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई | सीसारौली के जाटों ने शाहमल के सहयोगी सूरजमल की मदद की | जबकि दाढ़ी वाले सिक्ख  क्रांतिकारी ने  किसानों का नेतृत्व किया |

जुलाई 1857 में अंग्रेजी सेना ने लगभग 7 000 सैनिकों को सशस्त्र किसानों और जमींदारों के साथ डटकर संघर्ष किया. शाहमल के भतीजे भक्ता के हमले से बचकर सेना का नेतृत्व करने वाला डनलप भाग गया, लेकिन भक्ता ने उसे बड़ोद तक खदेड़ा।

Baba Shahmal

इस समय शाहमल के साथ 2000 शक्तिशाली किसान मौजूद थे | गोरिल्ला युद्ध प्रणाली में विशेष महारत हासिल करने वाले शाहमल और उनके अनुयायियों का बड़ोत  के दक्षिण के एक बाग़ में खाकी रिसाला से आमने-सामने घमासान युद्ध हुआ | डनलप शाहमल के भतीजे भक्ता  के हाथों से बाल बाल बचकर भागा |

लेकिन शाहमल, जो एक अंगरक्षक के साथ अपने घोड़े पर लड़ रहा था, फिरंगियों के बीच गिर गया और अपनी तलवार से ऐसा करतब दिखाया कि फिरंगी दंग रह गए। तलवार गिरने पर शाहमल ने अपने भाले से अपने दुश्मनों पर हमला करते हुए पगड़ी खोली, जो घोड़े के पैरों में फंस गई।

स्वतंत्रता संग्राम के महान सिपाही

उसे एक फिरंगी सवार ने घोड़े से गिरा दिया शाहमल को पहचानने वाले अंग्रेज अफसर पार्कर ने उसके शरीर को टुकड़े-टुकड़े कर दिया,।

यह फिरंगियों की सबसे बड़ी जीत की पताका थी। डनलप ने लिखा है कि अंग्रेजों की खाकी रिसाली के एक भाले पर अंग्रेजी झंडा था और दूसरे भाले पर शाहमल का शिर टांगकर पूरे क्षेत्र में परेड करवाई गई थी।

21 जुलाई 1857 को

अंग्रेज अधिकारियों को पता चला कि बाबा श्याममल अपने 6000 साथियों के साथ मेरठ से आई सेना के खिलाफ लड़ते हुए मारा गया था। शाहमल का सिर काटकर सार्वजनिक रूप से दिखाया गया, लेकिन इस शहादत ने क्रांति को मजबूत किया।

Baba Shahmal

बिजरोल गांव में शाहमल का एक छोटा सा स्मारक बना है जो गांव को उसकी याद दिलाता है|

निष्कर्ष (conclusion)-

बाबा शाहमल की कहानी हमें यह सिखाती है कि आदमी अपने मूल्यों और निर्भीक इच्छाशक्ति के प्रति समर्पण से अनंत साहस का सामना कर सकता है। वह एक आम किसान से एक साहसिक नेता बन गया। उन्होंने अपने क्षेत्र को ब्रिटिश शासन से मुक्त करने के लिए अपनी जान देकर संघर्ष किया और अपने साथियों के साथ मिलकर सकारात्मक बदलाव किया।


उन्हें अदम्य साहसी के रूप में याद किया जाता है, और उनकी शहादत ने क्रांति को प्रेरित किया। Baba Shahmal की कहानी भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण योद्धा के रूप में जीवित है,

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